AESCULUS HIPPOCASTANUM MATERIA MEDICA (Aesculus hippocastanum)

 

MATERIA MEDICA 1



AESCULUS

Aesculus hippocastanum

 Key uses

• Dry, rough, burning throat

• Hemorrhoids (piles, swollen inflamed veins around anus)

• Varicose veins (enlarged, weak, damaged vein walls or valves)

• Pain in the small of the back (backache)

Remedy profile

Mental symptoms

Aesculus is best suited to people who are very low, depressed (Mood disorder), and irritable, with poor concentration (trouble focusing). They may lose their temper easily, tending to brood (think a lot about something) afterward.

Physical Symptoms

The remedy is given primarily for treating haemorrhoids (piles, swollen inflamed veins around anus), especially when the rectum (end part of your colon) feels dry and uncomfortable, as though it is full of small sticks in the anus, or when the hemorrhoids are internal and associated with constipation (stool cannot eliminate properly from your rectum) and pain in the lower back. Often the anus (end of the digestive track through which stool leave your body) feels hot, dry, and itchy. Lumpy stools may occur, with stabbing (feel like shooting and burning sensation), tearing, or splinter like pains in the anus. Distension (bloating or swelling) in the bowels may develop, with colicky pain (feels like obstruction) and foul smelling gas. There may be varicose veins (enlarged, weak, damaged vein walls or valves), and a feeling of congestion and tenderness (pain when pressured) in the liver. The haemorrhoids (piles, swollen inflamed veins around anus) may be associated with pains and chills in the spine, and a dull, constant backache (back pain) that makes bending down or rising after sitting difficult, and walking is impossible in that kind of pain. the remedy is given for a dry, rough, burning throat accompanied by sneezing and profuse catarrh thick liquid).

Modalities

Symptoms Amelioration - cool air (unless it is directly inhaled); vigorous exercise.

Symptoms Aggravation - bending or getting up from a seat; walking, standing, breathing deeply, swallowing; passing stools, after eating, sleep.


MATERIA MEDICA 2

Aesculus Hippocastanum


यह बवासीर, कितने ही स्त्री-रोग और फैरिञ्जाटिस ( गलनली-प्रदाह ) इत्यादि रोगों में व्यवहारके लिये प्रसिद्ध है। इस्क्युलस का रोगी क्रोधी और आशाहीन रहता है। डॉ० हेलका कहना है-इस्क्युलस की क्रिया यकृत, यकृत- 'धमनी और सिरा ( liver and portal system ) इत्यादि पर होती है । क्रिया – यकृत की क्रिया की विलक्षणता से तथा और भी कई कारणों से शिराओं में रक्त की अधिकता होकर वे फूल उठतीं हैं, हिमरॉयडल - शिरामें मलद्वार के बगल और भीतर की श्लेष्मिक झिल्ली की हिमरॉयडल (निम्नसरलांग) ज्यादा हो जाने की वजह से शिरा फट जाती है और मलद्वार (Anus) से खून खून निकलने लगता है ( इसे हमलोग खूनी बवासीर कहते हैं ) ; इससे मलद्वार में प्रदाह होता है, उस शिराका आखरी भाग फूल कर मलद्वारके भीतर या बाहर बकरीके स्तनकी छीमीकी तरह हो जाता है, कब्ज इत्यादि कितने ही उपसर्ग पैदा हो जाते हैं। यही बवासीर और बवासीरका मसा ह इसपर इस्क्युलस की विशेष क्रिया होती है 

नीचे लिखी बीमारियोंमें इस्क्युलसकी अधिक जरूरत पड़ती है - बवासीर और बवासीरका मसा; कमर और कूल्हे की हड्डी में तेज दर्द, जिसकी वजहसे काम-काज न कर सकना ( मैकरोटिनम ) ; कब्ज, सरलांत्र ( काँच ) निकलना (fissure); अर्श या पित्त-वृद्धि के साथ मन्दाग्नि और पाकाशय-शूल ( गैस्ट्रैलजिया ); बाधक, श्वेतप्रदर, ऋतुस्रावका रङ्ग कालिमा लिये, स्राव गाढ़ा, खाल गला देनेवाला ; फॉलिक्युलर फैरिञ्जाइ- टिस अर्थात् गलकोषकी ग्रन्थि- वृद्धिके साथ गलकोषका प्रदाहं ।

चरित्रगत लक्षण - शरीरके कितने ही स्थानोंमें, जैसे— हृत्पिण्ड, फेफड़े, पाकस्थली, मस्तिष्क, तलपेट, चर्मइत्यादि स्थानोंमें— इस तरह की पूर्णता मालूम होना मानो बहुत-सा खून जमा हुआ है, हमेशा दुखित क्रोधी स्वभाव रहना ; यकृत और हिमरॉयडल शिरा (मलनलीका नीचेवाला शिरा-जाल) में रक्त इकट्ठा होना, दर्द ; मुँह, गला, मलनली आदिकी श्लैष्मिक झिल्लीका फूलना ; वहाँ दर्द ; जलन और सूखापन मालूम होना; नाकसे पानीकी तरह कच्चे जुकाम का स्राव निकल ना, नाक में जलन, नाक में घाव की तरह दर्द, लगने से तकलीफ बढ़ना ; बवासीर, मलद्वार में जलन, खुजली, सूखापन, हवा गरमी और भार मालूम होना, ऐसा मालूम होना जैसे मलद्वार में कीलें ठोंकी हुई हैं ; कमर और कूल्हेकी हड्डी में तेज दर्द के साथ कब्ज ; गर्भावस्था में कमर में बेतरह दर्द ; जरायुका अपने स्थानसे हटना ( प्रोलैप्सस ), श्वेत-प्रदर; (leucorrhea) गलकोष-प्रदाह रोगमें- गलेमें जलन, गलेमें गोदनेकी तरह दर्द और सूखा-पन, सूखी खाँसी । अर्श-मलद्वारमें कुछ गड़ते रहनेकी तरह दर्द, अकड़नका दर्द, कमरमें दर्द ( pain in sacroiliac symphysis pubis ), भार मालूम होना, मलद्वार भीगा मालूम होना, मलद्वार में जलन, खुजली, मसा (भीतरी या बाहरी मसा), उसमें बहुत दर्द, यकृतकी जगह भार मालूम होना, कमर में दर्द, पाखाना हो जानेके बाद मलद्वार में बहुत देर तक जलन रहना, पाखाना हो जानेके बाद मलद्वार रुका है ऐसा मालूम होना इत्यादि इसके विशेष लक्षण है । इस्क्युलसके बवासीर में- साधारणतः रक्तस्राव नहीं रहता ( blind piles ), पर बीमारी पुरानी हो जानेपर रक्तस्राव भी होता है । इसमें बवासीरका है इस्क्युलस-नक्स वोमिका, दर्द – कमर और पीठ तक फैल जाता सलफर और कॉलिन्सोनियासे यदि किसी तरहका फायदा न दिखाई दे, तो उनके बाद इसका प्रयोग करनेसे विशेष लाभ होता है ; इसका दर्द आदि विश्राम करनेपर घटता है और हिलने-डोलनेपर बढ़ता है (ब्रायोनिया आदिके समान ; अन्यान्य कितने ही लक्षण - एलोके समान हैं ) । नक्स वोमिका – इसके बवासीर में अकसर खून जाता है ; पाखाना लगता है, पर होता नहीं। इसके मलद्वारका दर्द और कमरका दर्द इस्क्युलसके दर्द की अपेक्षा बहुत कम होता है और विश्राम करनेपर घटना और हिलने डोलने या परिश्रमसे बढ़ना—यह लक्षण भी नहीं है । नक्ससे—बीमारी कुछ घटनेपर उसके बाद सलफरसे लाभ होता है । बहुत-सी पुस्तकोंमें बवासीरकी बीमारी में सवेरे सलफर और शामको नक्स वोमिकाके व्यवहारका उपदेश दिया गया है, पर हम इस तरह पर्यायक्रमसे औषध विशेषकर सलफरके प्रयोग करनेके पक्षपाती नहीं हैं । रैटान्हिया–( एक तरह के वृक्षकी जड़से इसका मदर-टिंचर तैयार होता है ) क्रम—३, २००–मलद्वारमें काँचके टुकड़े-से गड़ना और दर्द इस्क्युलसकी बनिस्वत कम रहनेपर भी इसमें इतनी अधिक जलन रहती है कि जैसे किसीने लाल मिर्चकी बुकनी छिड़क दी हो । पाखाना हो जानेके बाद मलद्वार में असह्य दर्द और बहुत देर तक जलन रहती है । इस्क्युलसमें – पाखानेके बहुत देर बाद और रैटान्हियामें—पाखाना होनेके ठीक बादसे ही जलन आरम्भ हो जाती है मलद्वारमें फिशर ( फटना ), जिसमें स्पर्श सहन न होनेवाला दर्द और स्तनकी घुण्डी फटने ( फिशर) में भी — रैटान्हिया ( ratanhia ) फायदेमन्द है । कॉलिन्सोनिया- बवासीरसे लगातार खून जाना ( खून न जानेपर भी इससे लाभ होता है ), रोगीका ऐसा समझना कि मलद्वारमें काँचका चूरा या एक धारदार काँटी गड़ी हुई है। इसके उपसर्ग रातमें बढ़ते हैं। जबरदस्त कब्ज, मल कड़ा और गेंदकी तरह गोल एलो-इसके बवासीरमें ठण्डे पानीका प्रयोग करनेपर तकलीफ घटती है।  इसमें पाखाना- वायु निकलनेके साथ ही या पेशाबके वेगसे अनजानमें निकल जाता है, पेटमें वायु होती है ( इग्नेशिया अध्याय देखिये) । सम्पूर्ण हैमामेलिस-बहुत ज्यादा परिमाणमें रक्तस्राव। इसका अध्याय देखिये। द्रष्टव्य :- अर्श (बवासीर) एक तरहका धातुगत रोग है, यह प्राय: आरोग्य नहीं होता । कुछ दिनोंके लिए केवल दब जाता है, फिर बीच-बीच में इसके उपसर्ग दिखाई देते हैं । इस रोग में यदि किसी दवा से कोई लाभ न दिखाई दे, तो आलपीन या सूईसे ४-५ जीवित खटमल पकड़कर एक टुकड़े पके केले के अन्दर भरकर २-४ दिन सवेरे खाली पेटमें निगल जाइये, खूनी बवासीर •में इससे ही खून जाना अकसर बन्द हो जाता है । पाँचवें दिनसे २-३ खटमल इसी तरह २-३ सप्ताह खानेसे – या तो रोगी एकदम आरोग्य हो जायगा अथवा बहुत दिनों तक अच्छा रहेगा । खूनी बवासीर में यह मेरी परीक्षित है (साइमेक्स देखिये) । हर बार पाखानाके बाद अंगुली से रेक्टमके अन्दरसे मल निकाल देनेपर अर्थात्–नित्य मल साफ रखनेसे बवासीर सम्पूर्ण अच्छा हो जायगा। जो आलसी हों, काम-काज करनेकी इच्छा न होती हो, शराब आदि पीते हों, उनकी बीमारी में - इस्क्युलस ग्लैबरा लाभदायक है । दवाबच्चों के बवासीर में – ऐमोन कार्ब, बोरैक्स, मर्क्युरियस ; वृद्धोंको – ऐमोन कार्ब, ऐनाकार्डियम ; गर्भावस्था में - लाइकोपोडियम, नक्स; सौरीमें- पल्सेटिला ; शराबियोंके बवासीर में-लैकेसिस, नक्स आदि ( बवासीरकी तकलीफके लिये- प्लैण्टेगो देखिये ) ; अर्शके कारण काँच बाहर निकल पढे और भीतर न जाये तो- रूटा 8 का बाहरी और ३० या २०० शक्तिका भीतरी प्रयोग करना चाहिये । स्त्री-रोग - जरायु - ग्रीवाका फूलना, दर्द, गर्भाशयका टेढ़ा हो जाना या घूम जाना, जरायु कड़ी होना, उसमें टपक इत्यादिमें - इस्क्युलस बहुत फायदा करती है। पीले रंगका प्रदरका स्राव, बाधकका दर्द और उसके साथ ही कमरमें दर्द इत्यादिमें भी यह लाभदायक है । इसके साथ बवासीर, यकृतका दोष वगैरह कुछ भी देखने की जरूरत नहीं । खाँसी - फॉलिक्युलर फैरिञ्जाइटिस- सवेरे बलगम अधिक निकलना, गला फँसा रहना, गलेमें घाव, दर्द, सूखापन, जलन (chronic pharyngitis : पुराना गलकोष-प्रदाह) और बवासीरवाले रोगियोंकी इस बीमारी मेंइस्क्युलस अधिक लाभदायक है।


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